शब्द दर शब्द
मैं जुड़ता रहा
बढ़ता रहा आगे
कभी मुड़ता रहा
प्यार में कैसी मधुर सी
यातना मिलती रही
सूखती बाती दिए की
बस यूंही जलती रही
टूटती बदरी कहीं पर
मौन मुक्ताकाश में
किस जमीं की खोज में
वह रही वनवास में
क्यूं क्षरित हो बूंद बूंद
बर्फ सी गलती रही
प्यार में कैसी मधुर सी
य़ातना मिलती रही
याचना के मौन से जब
स्वप्न मुखरित हो चला
चेतना का बोध जब
अर्थ सारे खो चला
बस तुम्हारी गंध ही
सांसो में घुलती रही
प्यार में कैसी मधुर सी
यातना मिलती रही
अहसास का पाथेय मेरा
खो न जाए राह में
देह का अवरोध किंचित
आ न जाए चाह में
जिन्दगी भर देह की यह
वंचना छलती रही
प्यार में कैसी मधुर सी
यातना मिलती रही
चलता रहा चलता रहा
खुद वर्जना गढ़ता रहा
इक कहानी की तरह
तुझे चाहना पढ़ता रहा
जिन्दगी खुदगर्ज थी
चलती रही चलती रही
प्यार में कैसी मधुर सी
यातना मिलती रही