यह तोड़ देता है सभी बंधन हरेक दीवार
प्रिय देख लो कितना अराजक है तुम्हारा प्यार
शायद सुकोमल गात का भ्रम तोड़ना अच्छा
हर नजरबंदी का उपक्रम तोड़ना अच्छा
खण्डित छवि में स्वप्न अपने जोड़ना अच्छा
इंगितों के रास्तों को छोड़ना अच्छा
कुंद करती जा रही हो रीतियों की धार
प्रिय देख लो कितना अराजक है तुम्हारा प्यार
निर्बन्ध हो तो अनवरत बहती नदी हो तुम
अवरोध पर एक कुलबुलाती त्रासदी हो तुम
टूटते मिथकों से उपजी ताजगी हो तुम
इतिहास से कुछ प्रश्न करती सी सदी हो तुम
भयभीत हैं सब सर्वसत्तावादी पहरेदार
प्रिय देख लो कितना अराजक है तुम्हारा प्यार
पग तुम्हारे कण्टकों पर पड़ रहे तो क्या
थोपे गए प्रतिमान सारे झड़ रहे तो क्या
रस,अलंकारों के चिथड़े उड़ रहे तो क्या
युग की आंखों में ये सपने गड़ रहे तो क्या
एक बेहतर सी तो दुनिया ले रही आकार
प्रिय देख लो कितना अराजक है तुम्हारा प्यार